CBIC: रूल 89(5) विवाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका ठुकराई, 10 हज़ार का जुर्माना

CBIC: देश की अदालतें केवल कानून का पालन कराने के लिए ही नहीं बल्कि न्याय की गहराई और पारदर्शिता को भी बनाए रखने का काम करती हैं। हाल ही में ऐसा ही एक अहम फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया, जिसमें केंद्र सरकार की याचिका को न केवल खारिज कर दिया गया बल्कि उस पर जुर्माना भी लगाया गया। यह मामला टैक्स रिफंड से जुड़ा था, जिसे लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था।

टैक्स रिफंड विवाद की पृष्ठभूमि

मामला “Union of India & Ors. बनाम M/s. Tirth Agro Technology Pvt. Ltd. & Ors.” से जुड़ा है। विवाद जीएसटी अधिनियम 2017 की धारा 54(3) और सीजीएसटी नियम 89(5) के तहत रिफंड को लेकर शुरू हुआ था। 5 जुलाई 2022 से पहले नियम में केवल इनपुट गुड्स को शामिल किया जाता था और इनपुट सर्विसेज़ को रिफंड फॉर्मूले से बाहर रखा गया था। बाद में GST Notification No. 14/2022 के तहत फॉर्मूले में संशोधन कर इनपुट गुड्स और इनपुट सर्विसेज़ दोनों को शामिल किया गया। हालांकि, 10 नवंबर 2022 की सीबीआईसी सर्कुलर ने इसे भविष्य में लागू होने वाला बताया। यहीं से विवाद गहराया और कई कंपनियों ने अदालत का रुख किया।CBIC

गुजरात हाईकोर्ट का अहम फैसला

गुजरात हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2024 को अपने फैसले में कहा कि जुलाई 2022 का संशोधन केवल स्पष्टीकरण (clarificatory) और उपचारात्मक (curative) है, इसलिए इसे पिछली तारीख से लागू माना जाएगा। कोर्ट ने सीबीआईसी सर्कुलर को आंशिक रूप से निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि जिन कंपनियों ने दो साल की सीमा के भीतर रिफंड क्लेम किया है, उनके रिफंड नए फॉर्मूले से दोबारा गणना किए जाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की केंद्र की अर्जी

केंद्र सरकार हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इसी तरह का मामला पहले भी Ascent Meditech Ltd. बनाम Union of India में आ चुका है और उस पर हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा जा चुका है।

सरकार ने जब यह नई याचिका दायर की तो उसमें यह तथ्य छुपाया गया कि इसी मुद्दे पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट एक अर्जी खारिज कर चुका है। यही कारण रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को पूरी तरह खारिज करते हुए केंद्र सरकार पर 10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया और इसे एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन में जमा करने का निर्देश दिया।

इस फैसले का महत्व

यह फैसला न केवल टैक्स रिफंड मामलों में स्पष्टता लाता है बल्कि यह भी दिखाता है कि अदालतें बार-बार एक ही विषय पर याचिकाओं के जरिए समय बर्बाद करने की अनुमति नहीं देतीं। यह उन कंपनियों के लिए राहत की बात है जिन्होंने रिफंड क्लेम किया था और संशोधित नियमों का लाभ पाने के हकदार थे।CBIC

निष्कर्ष:-

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बताता है कि न्यायपालिका केवल कानून की व्याख्या ही नहीं करती, बल्कि पारदर्शिता और जिम्मेदारी को भी सुनिश्चित करती है। यह फैसला टैक्स सिस्टम में न्याय और संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सभी जानकारी विश्वसनीय और प्रमाणिक स्रोतों पर आधारित है। किसी भी प्रकार की त्रुटि को मानवीय भूल समझा जाए। यह लेख केवल सूचना देने के उद्देश्य से लिखा गया है। हम किसी प्रकार की टैक्स या कानूनी सलाह प्रदान नहीं करते। पाठक किसी भी निर्णय से पहले अधिकृत विशेषज्ञ या विभाग से परामर्श अवश्य लें।

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Rishant Verma