Bihar Election 2025: क्या महागठबंधन के बहिष्कार से रुक सकते हैं चुनाव? पढ़ें पूरा सच

Bihar Election 2025: जब किसी राज्य में राजनीतिक टकराव अपने चरम पर हो और विपक्ष खुलेआम चुनाव से दूरी बनाने की बात करे, तो आम जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है – क्या अब चुनाव होंगे भी या नहीं? बिहार में इस वक्त कुछ ऐसा ही माहौल बन गया है। तेजस्वी यादव जैसे बड़े नेता चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहे हैं और यहां तक कह चुके हैं कि ऐसी स्थिति रही तो महागठबंधन चुनाव में हिस्सा नहीं लेगा। लेकिन क्या विपक्षी पार्टियों के बहिष्कार से बिहार चुनाव रुक सकते हैं? आइए जानते हैं इसका कानूनी और संवैधानिक सच।

संविधान क्या कहता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को चुनाव आयोजित करने, उसकी प्रक्रिया तय करने और उसे निष्पक्ष रूप से संपन्न कराने का संपूर्ण अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार इतना मजबूत है कि अगर राज्य की सारी मुख्य विपक्षी पार्टियां भी चुनाव में हिस्सा लेने से मना कर दें, तब भी चुनाव आयोग को चुनाव करवाना होता है। इसका मतलब यह है कि कोई राजनीतिक दल चुनाव में भाग ले या नहीं, चुनाव की प्रक्रिया रुक नहीं सकती।Bihar Election 2025

क्या पहले भी हुआ है ऐसा?

इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है जब किसी राज्य में विपक्षी दलों ने चुनाव का बहिष्कार किया, लेकिन फिर भी चुनाव समय पर हुए और वैध माने गए। जैसे 1989 में मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट ने चुनाव का विरोध किया था और कांग्रेस ने सभी सीटें जीत लीं। मामला सुप्रीम कोर्ट गया और कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ बहिष्कार की वजह से चुनाव रद्द नहीं हो सकते, जब तक पूरी प्रक्रिया वैध हो।

1999 के जम्मू-कश्मीर चुनावों में भी कई अलगाववादी संगठनों ने बहिष्कार किया था लेकिन फिर भी चुनाव हुए और सरकार बनी। 2014 में हरियाणा पंचायत चुनावों में भी शिक्षा और आय मानदंडों के खिलाफ विरोध के चलते कई क्षेत्रों में विपक्ष ने हिस्सा नहीं लिया, फिर भी चुनाव आयोग ने चुनाव कराए और इसे संवैधानिक माना गया।

सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या रहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने पीपल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2013 के केस में कहा था कि प्रतिस्पर्धा और भागीदारी लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है कि वह चुनाव कब और कैसे आयोजित करे। अगर कोई पार्टी या पूरा गठबंधन बहिष्कार करता है, तो यह उनकी राजनीतिक रणनीति हो सकती है, लेकिन इससे चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ता।

क्या बिना विपक्ष के चुनाव जायज़ होंगे?

अगर सिर्फ सत्तारूढ़ दल ही अपने प्रत्याशी उतारे और विपक्ष कोई भी कैंडिडेट न खड़ा करे, तो ऐसे में चुनाव प्रक्रिया फिर भी जारी रहती है। हां, अगर एक भी उम्मीदवार के खिलाफ कोई नामांकन नहीं आता, तो वह प्रत्याशी निर्विरोध विजयी घोषित किया जा सकता है। लेकिन इससे चुनाव रद्द नहीं होते। अलबत्ता यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती को जरूर सवालों के घेरे में ले आता है।

क्या सुप्रीम कोर्ट चुनाव रुकवा सकता है?

सिद्धांत रूप से विपक्ष यह तर्क देकर सुप्रीम कोर्ट जा सकता है कि बिना प्रतियोगिता के चुनाव असंवैधानिक हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट पहले भी यह स्पष्ट कर चुका है कि जब तक चुनाव की प्रक्रिया निष्पक्ष और संवैधानिक मानकों के अनुरूप है, तब तक सिर्फ बहिष्कार की वजह से चुनाव रद्द नहीं हो सकते। यानी अदालतें भी इसमें दखल नहीं दे सकतीं जब तक कि कोई बड़ी संवैधानिक गड़बड़ी न हो।Bihar Election 2025

निष्कर्ष

बिहार चुनाव को लेकर इन दिनों जो माहौल बना हुआ है, वह सचमुच गंभीर है। लेकिन जनता को यह जान लेना चाहिए कि चाहे कितनी भी बड़ी पार्टियां चुनाव का बहिष्कार करें, चुनाव समय पर और पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार होंगे। यह भारत के लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां किसी एक दल की मर्जी से संविधान नहीं झुकता। हां, अगर जनता चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाएगी, तो वह लोकतंत्र के लिए एक अलग खतरा बन सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि राजनीतिक बहसें चलें, मतभेद हों, लेकिन लोकतंत्र की प्रक्रिया न रुके।

डिस्क्लेमर: यह लेख पूरी तरह से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध संवैधानिक जानकारी, सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों और समाचार रिपोर्टों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल पाठकों को जागरूक करना है। इसमें दी गई कोई भी जानकारी कानूनी सलाह नहीं मानी जाए। चुनाव, कानून और राजनीति से जुड़ी किसी भी स्थिति में आधिकारिक स्रोतों और विशेषज्ञों से राय लेना आवश्यक है।

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Rishant Verma