GDP Growth : भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से मजबूती का संकेत दे रही है। नए आंकड़ों ने न केवल विशेषज्ञों बल्कि आम लोगों के चेहरों पर भी उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो न केवल उम्मीदों से ज्यादा है बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हालिया अनुमान 6.5 प्रतिशत को भी काफी पीछे छोड़ देती है। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि तमाम वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है।
सेवाओं और मैन्युफैक्चरिंग से मिला सहारा
इस तेज़ ग्रोथ के पीछे सबसे बड़ी ताकत रही है सेवाओं का क्षेत्र। वैल्यू एडेड ग्रोथ 7.6 प्रतिशत रही, जो इस बात का सबूत है कि सेवा क्षेत्र ने पूरे आर्थिक ढांचे को संभालने में अहम भूमिका निभाई है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने भी शानदार प्रदर्शन किया और 7.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। वहीं, कृषि क्षेत्र ने 3.7 प्रतिशत की ग्रोथ के साथ स्थिरता दिखाई। समय पर और संतुलित बारिश से खरीफ फसलों की बुआई अच्छी रही, जिससे ग्रामीण खपत और कृषि उत्पादन को मजबूती मिली।
निवेश और खर्च ने दी रफ्तार
पहली तिमाही में निजी खपत और निवेश गतिविधियों ने अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दी। सरकार का खर्च भी इस बार तेजी से बढ़ा है। जहां पिछले साल इसी दौरान सरकारी खर्च में गिरावट देखी गई थी, वहीं इस बार केंद्र सरकार का पूंजीगत खर्च 52 प्रतिशत तक बढ़ा। इतना ही नहीं, 24 राज्यों के पूंजीगत खर्च में भी 23 प्रतिशत की बढ़त दर्ज हुई। इससे यह साफ है कि सरकार विकास परियोजनाओं और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में आक्रामक रूप से काम कर रही है।
कंपनियों के आंकड़े और चुनौतियाँ
हालांकि कंपनियों के स्तर पर तस्वीर थोड़ी अलग रही। बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के अनुसार, 2,545 कंपनियों के एक नमूने में नेट सेल्स सिर्फ 4.9 प्रतिशत बढ़ी। बैंकिंग और इंश्योरेंस को छोड़कर यह आंकड़ा और नीचे गिरकर 3.6 प्रतिशत रहा। हालांकि तेल क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी को छोड़ दें तो टैक्स के बाद का मुनाफा 8.3 प्रतिशत बढ़ा है। यह साफ करता है कि जहां एक ओर समग्र अर्थव्यवस्था मजबूती दिखा रही है, वहीं कॉर्पोरेट सेक्टर अब भी दबाव महसूस कर रहा है।
नाममात्र जीडीपी और आगे की राह
दिलचस्प यह है कि वास्तविक जीडीपी तो तेज़ी से बढ़ी, लेकिन नाममात्र जीडीपी की रफ्तार धीमी हुई है। पिछले साल पहली तिमाही में जहां यह 9.7 प्रतिशत थी, वहीं इस साल घटकर 8.8 प्रतिशत पर आ गई। यह निचले स्तर के डिफ्लेटर की ओर इशारा करता है। इसका अर्थ है कि आगे की राह पूरी तरह आसान नहीं है और चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।
भारत की उम्मीदों भरी अर्थव्यवस्था
इन तमाम उतार-चढ़ावों के बीच एक बात साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत नींव पर खड़ी है। ग्रामीण और शहरी खपत, निवेश और सेवाओं का दमदार प्रदर्शन यह संकेत दे रहा है कि आने वाले महीनों में भी भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपनी पहचान बनाए रख सकता है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सरकारी आँकड़ों और विभिन्न आर्थिक रिपोर्टों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य केवल जानकारी साझा करना है। किसी भी आर्थिक निर्णय के लिए विशेषज्ञों की सलाह लेना आवश्यक है।
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