Kishtwar Tragedy: जम्मू-कश्मीर का किश्तवाड़ जिला इन दिनों एक भयावह त्रासदी से गुजर रहा है। 14 अगस्त को दोपहर करीब 12:25 बजे चिसोटी गांव में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने पूरे इलाके को तबाह कर दिया। कुछ ही मिनटों में बाजार, मंदिर, घर और पुल सब बह गए। इस हादसे ने न सिर्फ जमीन बल्कि सैकड़ों परिवारों की ज़िंदगी भी हिला दी।
चिसोटी गांव में तबाही का मंजर
बादल फटने से आई भीषण बाढ़ ने गांव के बीचोंबीच लगी अस्थायी मंडी, यात्रियों के लिए बने सामुदायिक रसोईघर और सुरक्षा चौकी को अपने साथ बहा दिया। 16 घर, कई सरकारी इमारतें, तीन मंदिर, चार पानी की चक्कियां, 30 मीटर लंबा पुल और दर्जनों वाहन इस तबाही में तबाह हो गए। चंद सेकंड में खुशहाल बस्तियां मलबे और कीचड़ में बदल गईं।
राहत और बचाव में जुटा प्रशासन
घटना के बाद से ही राहत और बचाव कार्य जारी है। प्रशासन ने दर्जनभर से ज्यादा जेसीबी और मशीनें मौके पर लगाई हैं। एनडीआरएफ की टीमों ने डॉग स्क्वाड और विशेष उपकरणों की मदद से दबे लोगों को निकालने का प्रयास तेज कर दिया है। भारतीय वायुसेना ने जम्मू और ऊधमपुर में दो Mi-17 हेलिकॉप्टर और एक एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर को स्टैंडबाय पर रखा है ताकि राहत कार्यों में तेजी लाई जा सके।
अब तक की स्थिति
अधिकारियों के अनुसार अब तक 46 शवों की पहचान कर उन्हें परिजनों को सौंपा जा चुका है। वहीं, 75 लोग अब भी लापता हैं, जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है। इस हादसे में सीआईएसएफ के दो जवान और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक एसपीओ की भी मौत हुई है।
नेताओं का दौरा और प्रभावित परिवारों को सहारा
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को प्रभावित गांव का दौरा किया। सेना के अधिकारियों ने उन्हें स्थिति की जानकारी दी और उन्होंने वर्चुअल रियलिटी हेडसेट के जरिए तबाही का आकलन किया। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और जम्मू-कश्मीर के डीजीपी नलिन प्रभात ने भी घटनास्थल पर पहुंचकर राहत कार्यों का जायजा लिया। वहीं, मंत्री सतीश शर्मा ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया।
रुकी हुई यात्रा और लोगों का दर्द
इस त्रासदी ने मशहूर मचैल माता यात्रा को भी रोक दिया है। 25 जुलाई से शुरू हुई यह यात्रा 5 सितंबर तक चलनी थी, लेकिन हादसे के बाद से तीसरे दिन तक पूरी तरह स्थगित है। चिसोटी गांव से शुरू होने वाली 8.5 किलोमीटर लंबी पदयात्रा अब खामोशी में डूबी है। हजारों श्रद्धालु, जो उस समय मंदिर में मौजूद थे, सेना द्वारा बनाए गए अस्थायी पुल से सुरक्षित निकाले जा रहे हैं।
तबाही के निशान और उम्मीद की किरण
वीडियो और तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि किस तरह गंदले पानी की धाराओं ने पूरे गांव को बहा दिया। पहाड़ से गिरते पत्थर, टूटी सड़कें और कीचड़ में दबे घर अब उस जगह की पहचान बन गए हैं, जहां कभी हरियाली और रौनक हुआ करती थी। हालांकि सुरक्षा बलों ने अस्थायी लकड़ी का पुल बनाकर लोगों की आवाजाही शुरू कर दी है, लेकिन इस आपदा ने जो जख्म दिए हैं, उन्हें भरने में वक्त लगेगा।
निष्कर्ष
किश्तवाड़ की यह त्रासदी एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के सामने इंसान कितना असहाय हो सकता है। इस आपदा में खोई जानें, बिखरे सपने और उजड़े परिवार हमारे समाज के लिए गहरी चोट हैं। अब पूरा देश उम्मीद लगाए बैठा है कि जल्द से जल्द सभी लापता लोगों को ढूंढा जा सके और प्रभावित परिवारों को फिर से खड़ा होने में सहारा मिल सके।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी विश्वसनीय समाचार एजेंसियों और आधिकारिक सूत्रों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल पाठकों तक तथ्य और घटनाक्रम पहुंचाना है।
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