Land Registry Expenses :हर इंसान की जिंदगी में अपना खुद का घर होना एक सपना ही नहीं बल्कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक होता है। जब सालों की मेहनत और बचत के बाद घर या प्लॉट खरीदने का मौका आता है, तो दिल में एक खास खुशी होती है। लेकिन इसी खुशी के बीच अक्सर लोग एक बड़ी गलती कर बैठते हैं – घर की कीमत तो सोच लेते हैं, पर रजिस्ट्री और उससे जुड़े खर्चों को नजरअंदाज कर देते हैं। यही खर्च बाद में फाइनेंशियल प्लानिंग को बिगाड़ सकते हैं।
रजिस्ट्री खर्च क्यों है जरूरी समझना?
घर या प्लॉट की रजिस्ट्री सिर्फ एक कानूनी औपचारिकता नहीं बल्कि सरकार को दिया जाने वाला टैक्स है, जो संपत्ति को आपके नाम पर आधिकारिक रूप से दर्ज करता है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस का होता है। भारत के हर राज्य में इनकी दरें अलग-अलग होती हैं और ये मुख्य रूप से प्रॉपर्टी की लोकेशन, बाजार मूल्य और खरीदार के आधार पर तय की जाती हैं।
कई बार लोग केवल प्रॉपर्टी की कीमत को ध्यान में रखकर लोन लेते हैं और बाद में रजिस्ट्री खर्च सामने आने पर परेशान हो जाते हैं। अगर पहले से ही सही कैलकुलेशन कर लिया जाए तो इस तरह की आर्थिक दिक्कत से बचा जा सकता है।
स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क क्या है?
स्टाम्प ड्यूटी एक तरह का टैक्स होता है, जो संपत्ति के मूल्य पर सरकार को दिया जाता है। यह दर आमतौर पर 3% से 10% के बीच होती है और हर राज्य में अलग-अलग तय की जाती है। वहीं रजिस्ट्रेशन शुल्क सामान्यतः प्रॉपर्टी के कुल मूल्य का 1% होता है।
इसके अलावा भी कुछ छोटे खर्च होते हैं, जैसे वकील की फीस, दस्तावेज तैयार करने का खर्च, फोटोकॉपी, बायोमेट्रिक सत्यापन और कोर्ट फीस। कई राज्यों में महिलाओं को स्टाम्प ड्यूटी पर विशेष छूट मिलती है, जिससे उनका कुल खर्च कम हो सकता है।
रजिस्ट्री खर्च कैसे कैलकुलेट करें?
मान लीजिए आप 50 लाख रुपये की प्रॉपर्टी खरीदते हैं और आपके राज्य में स्टाम्प ड्यूटी 6% तथा रजिस्ट्रेशन शुल्क 1% है। ऐसे में आपको कुल 3.5 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। इसमें 3 लाख रुपये स्टाम्प ड्यूटी और 50 हजार रुपये रजिस्ट्रेशन फीस होगी।
इसके अलावा अगर वकील या एजेंट की फीस और दस्तावेज संबंधी खर्च जोड़ दें, तो यह राशि और बढ़ सकती है। यही वजह है कि घर खरीदते समय इन खर्चों को नजरअंदाज करना बिल्कुल सही नहीं है।
राज्यवार रजिस्ट्री दरों का फर्क
दिल्ली में स्टाम्प ड्यूटी 4% से 6% तक है, उत्तर प्रदेश में यह 6% से 7% तक जाती है, जबकि महाराष्ट्र में 5% तय है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह दरें 7% से 8% तक हैं। वहीं केरल में सबसे ज्यादा 8% तक स्टाम्प ड्यूटी ली जाती है। इसके अलावा हर राज्य रजिस्ट्रेशन शुल्क के रूप में प्रॉपर्टी मूल्य का लगभग 1% लेता है।
खर्च कम करने के आसान उपाय
अगर आप चाहते हैं कि रजिस्ट्री का बोझ थोड़ा हल्का हो, तो कुछ उपाय काम आ सकते हैं। जैसे – महिलाओं के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदना, क्योंकि कई राज्यों में महिलाओं को स्टाम्प ड्यूटी पर छूट दी जाती है। इसके अलावा सरकारी पोर्टल का इस्तेमाल करके ऑनलाइन फीस कैलकुलेशन किया जा सकता है, जिससे अनावश्यक एजेंटों के चक्कर से बचा जा सकता है।
रजिस्ट्री के लिए जरूरी दस्तावेज
बिक्री विलेख (Sale Deed), आधार और पैन कार्ड जैसे पहचान पत्र, खरीदी-बिक्री की डिटेल्स और भुगतान की रसीद, गवाहों की उपस्थिति और पावती रसीद – ये सभी दस्तावेज रजिस्ट्री प्रक्रिया में जरूरी होते हैं। बिना इनकी मौजूदगी प्रक्रिया अधूरी रह जाती है।
रजिस्ट्री खर्च का सही अनुमान क्यों है जरूरी?
अगर आप समय रहते रजिस्ट्री खर्च का सही आकलन कर लें, तो आपका बजट बिगड़ने से बच सकता है। इससे होम लोन लेते समय अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता और पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रहती है। यही नहीं, भविष्य में कानूनी अड़चनें भी नहीं आतीं क्योंकि आपकी संपत्ति पूरी तरह से वैध और सुरक्षित तरीके से आपके नाम पर दर्ज हो जाती है।
निष्कर्ष
घर या प्लॉट खरीदना जिंदगी का सबसे बड़ा सपना जरूर है, लेकिन इसे पूरा करते समय अगर रजिस्ट्री खर्च को नजरअंदाज कर दिया जाए तो यह सपना बोझिल हो सकता है। इसलिए हमेशा घर की कीमत के साथ-साथ रजिस्ट्री और उससे जुड़े हर खर्च को भी ध्यान में रखें, ताकि आपकी खुशी अधूरी न रह जाए।
Disclaimer:यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है और केवल मार्गदर्शन के उद्देश्य से लिखा गया है। स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क की दरें राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर बदली जा सकती हैं। किसी भी निर्णय से पहले अपने राज्य की आधिकारिक वेबसाइट या संबंधित विभाग से नवीनतम जानकारी अवश्य प्राप्त करें। यह लेख किसी कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है।
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