Shibu Soren :जब एक नेता अपने समाज की रगों में बसा हो, उसकी हर सांस में अपने लोगों के लिए संघर्ष हो, तो उसका जाना किसी एक व्यक्ति का नहीं, एक युग का अंत होता है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सह-संस्थापक और आदिवासी समाज के अपार श्रद्धा के पात्र शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। 81 साल की उम्र में दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वो लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और पिछले महीने स्ट्रोक के बाद से वेंटिलेटर पर थे।
आदिवासी आंदोलन से झारखंड राज्य निर्माण तक का सफर
शिबू सोरेन का जन्म 1944 में झारखंड के एक छोटे से गांव में हुआ, जब वह इलाका बिहार का हिस्सा हुआ करता था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना के साथ की। उनका एकमात्र लक्ष्य था – आदिवासी बहुल इलाकों को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाना। और आखिरकार 2000 में जब झारखंड राज्य बना, तो शिबू सोरेन का सपना साकार हुआ।
वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन दुर्भाग्यवश राजनीतिक अस्थिरता के चलते कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 2004 में वह केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी बने लेकिन एक हत्या मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि बाद में कोर्ट से उन्हें राहत मिली और 2018 में वह सभी आरोपों से बरी हो गए।
“दिशोम गुरु” का अर्थ था – समाज के लिए जीना
झारखंड की राजनीति में उन्हें ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, जिसका मतलब है – “महान नेता।” उनका ये नाम सिर्फ एक उपाधि नहीं, बल्कि लोगों के दिलों से निकला आशीर्वाद था। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ‘X’ पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, “हमारे पूज्य दिशोम गुरु नहीं रहे, अब मेरे पास कुछ नहीं बचा।” ये शब्द एक बेटे के नहीं, एक संघर्ष के वारिस के थे।
प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के नेताओं तक ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिबू सोरेन को याद करते हुए उन्हें “जनता के लिए समर्पित एक जमीनी नेता” बताया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उन्हें झारखंड आंदोलन का “पिवोटल फिगर” कहा। शिवसेना (UBT) के नेता संजय राऊत ने तो यहां तक कह दिया कि “झारखंड की जनता के लिए वो भगवान से कम नहीं थे।” वहीं पूर्व बिहार मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा कि शिबू सोरेन का जाना “गहरा शोक” है और उन्होंने आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया।
एक युग का अंत, पर उनकी विरासत अमर रहेगी
शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, वो एक आंदोलन थे, एक आवाज थे, और सबसे बढ़कर – एक उम्मीद थे उन लोगों के लिए, जिनकी पीड़ा को सत्ता अक्सर अनसुना कर देती है। उनका जाना न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लेकिन उनकी सोच, उनका संघर्ष और उनकी आत्मा हमेशा जिंदा रहेगी, हर उस युवा में जो अपने समाज के लिए लड़ना चाहता है।
Disclaimer: यह लेख पूर्णतः यूनिक, इंसानी भावनाओं और जानकारी के आधार पर लिखा गया है। इसमें दी गई सभी जानकारियां सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित हैं और किसी भी भ्रामक या गलत सूचना का उद्देश्य नहीं है।
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