Supreme Court : हमारे मोहल्लों की सुबह अक्सर चाय की महक और दूर से आती किसी आवारा कुत्ते की भौंक से शुरू होती है। कुछ लोग इन गलियों के चार पैरों वाले बाशिंदों को अपना दोस्त मानते हैं, तो कुछ उनसे डरते हैं। लेकिन अब देश की राजधानी में इन कुत्तों का भविष्य अचानक सवालों में घिर गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है।
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला और वजह
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में आवारा कुत्तों की देखभाल को लेकर मौजूदा कानूनी व्यवस्था को नाकाफी बताते हुए आदेश दिया कि अगले आठ हफ्तों में सभी स्ट्रे डॉग्स को पकड़कर स्थायी रूप से शेल्टर होम्स में रखा जाए। यह फैसला हाल ही में बढ़ी कुत्तों के झुंड द्वारा लोगों पर हमलों की घटनाओं और बच्चों की मौत के बाद आया है। जुलाई में 6 साल की एक बच्ची की रैबीज़ से मौत ने इस मुद्दे को अदालत तक पहुंचा दिया, और सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी औपचारिक याचिका के इसे जनहित में खुद संज्ञान में लिया।
कानून से टकराता आदेश
मौजूदा एनिमल बर्थ कंट्रोल कानून कहता है कि स्ट्रे डॉग्स को वैक्सीनेट और नसबंदी के बाद उसी जगह छोड़ा जाए, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यह तरीका कारगर नहीं रहा और अब सच्चाई का सामना करने का समय है। अदालत ने चेतावनी दी कि इस आदेश में बाधा डालने वालों को कोर्ट की अवमानना का सामना करना पड़ेगा।
विरोध और सवाल
दिल्ली के वकील और खुद को डॉग लवर मानने वाले निशांक मट्टू ने इस आदेश को गलत बताया। उनका कहना है, “कानून के मुताबिक आप किसी कुत्ते को उसकी जगह से नहीं हटा सकते, जब तक कि उसे रैबीज़ न हो।” वहीं, शहर के वेटरनरी डॉक्टर यासिन हुसैन ने इसे “जल्दबाजी में लिया गया और अव्यवहारिक आदेश” कहा। उनका सवाल है कि इतने कम समय में एक मिलियन तक माने जाने वाले कुत्तों के लिए इतने बड़े शेल्टर कहां से बनाए जाएंगे और उन्हें चलाने के लिए पैसा और स्टाफ कहां से आएगा?
भावनाएं बनाम सुरक्षा
दिल्ली के अलावा देश के अन्य शहरों से भी इस फैसले पर आवाजें उठ रही हैं। बेंगलुरु में डॉग लवर्स सोशल मीडिया पर एकजुट होकर “कम्युनिटी डॉग्स को हटाने और नुकसान पहुंचाने” के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर कहा, “ये बेआवाज़ जिंदगियां कोई ‘समस्या’ नहीं हैं, जिन्हें मिटा दिया जाए।”
दिल्ली में अदालत का दखल कोई नई बात नहीं
राजधानी के रोजमर्रा के मामलों में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप पहले भी देखा गया है। 25 साल पहले बसों और ऑटो को सीएनजी में बदलवाने से लेकर पुराने डीज़ल वाहनों को हटाने तक कई बड़े फैसले कोर्ट ने दिए हैं। लेकिन इस बार मामला भावनाओं, कानून और सुरक्षा—तीनों का संगम है।
दिल्ली की गलियों के ये कुत्ते, जो न पूरी तरह पालतू हैं और न पूरी तरह जंगली, कई लोगों के लिए परिवार जैसे हैं। उन्हें खाना खिलाना, देखभाल करना एक मानवीय रिश्ता बन चुका है। मगर जब यही कुत्ते झुंड में आकर हमला करते हैं, तो डर और खतरा भी उतना ही वास्तविक हो जाता है। सवाल यह है कि क्या इन मासूम आंखों को हमेशा के लिए पिंजरों में बंद कर देना सही होगा, या कोई ऐसा रास्ता निकलेगा जो इंसानों और इन चार पैरों वाले साथियों—दोनों के लिए सुरक्षित और संवेदनशील हो।
अस्वीकरण: इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी और जनचेतना बढ़ाना है। इसमें व्यक्त विचार किसी विशेष नीति, संगठन या व्यक्ति के प्रति पक्षपाती नहीं हैं।
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